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हिंदी सिनेमा के दिग्गज कलाकार और कांग्रेस नेता शत्रुघ्न सिन्हा का जन्मदिन नौ दिसंबर-
उन्होंने साल 1969 में फिल्म साजन से अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने कई शानदार फिल्मों में काम किया। खास बात यह है कि हिंदी फिल्मों में शत्रुघ्न सिन्हा के सबसे ज्यादा डायलॉग्स चर्चा में रहे हैं। सिनेप्रियों की जुबान पर आज भी उनके डायलॉग्स सुनने को मिल सकते हैं। शत्रुघ्न सिन्हा के जन्मदिन के मौके पर आज हम आपको उनके बेहतरीन डायलॉग्स के बारे में बताते हैं।
डायलॉग- आज कल जो जितना ज्यादा नमक खाता है, उतनी ही ज्यादा नमक हरामी करता है।
फिल्म- असली- नकली (1986)
डायलॉग- मैं तेरी इतनी बोटियां करूंगा कि आज गांव का कोई भी कुत्ता भूखा नहीं सोएगा
फिल्म- जीने नहीं दूंगा (1984)
फिल्म- असली- नकली (1986)
डायलॉग- मैं तेरी इतनी बोटियां करूंगा कि आज गांव का कोई भी कुत्ता भूखा नहीं सोएगा
फिल्म- जीने नहीं दूंगा (1984)
डायलॉग- पहली गलती माफ कर देता हूं... दूसरी बर्दाश्त नहीं करता
फिल्म- असली- नकली (1986)
डायलॉग- जब दो शेर आमने-सामने खड़े हों, तो भेड़िये उनके आस-पास नहीं रहते
फिल्म- बेताज बादशाह (1994)
फिल्म- असली- नकली (1986)
डायलॉग- जब दो शेर आमने-सामने खड़े हों, तो भेड़िये उनके आस-पास नहीं रहते
फिल्म- बेताज बादशाह (1994)
डायलॉग- जली को आग कहते हैं, बुझी को राख कहते हैं, जिस राख से बारूद बने, उसे विश्वनाथ करते हैं
फिल्म- विश्वनाथ (1978)
डायलॉग- आज के जमाने में तो बेईमानी ही एक ऐसा धंधा रह गया है, जो पूरी ईमानदारी के साथ किया जाता है
फिल्म- कालीचरण (1976)
फिल्म- विश्वनाथ (1978)
डायलॉग- आज के जमाने में तो बेईमानी ही एक ऐसा धंधा रह गया है, जो पूरी ईमानदारी के साथ किया जाता है
फिल्म- कालीचरण (1976)
डायलॉग- अपनी लाशों से हम तारीखें आबाद रखें, वो लड़ाई हो अंग्रेज जिससे याद रखे
फिल्म- क्रांति (1981)
डायलॉग- जिसके सर पर तुझ जैसे दोस्त की दोस्ती का साया हो, उसके लिए बनकर आई मौत, उसके दुश्मन की मौत बन जाती है
फिल्म- नसीब (1981)
फिल्म- क्रांति (1981)
डायलॉग- जिसके सर पर तुझ जैसे दोस्त की दोस्ती का साया हो, उसके लिए बनकर आई मौत, उसके दुश्मन की मौत बन जाती है
फिल्म- नसीब (1981)
डायलॉग- अमीरों से गरीबों की हड्डियां तो चबाई जा सकती हैं, उनके घर की रोटियां नहीं
फिल्म- हमसे न टकराना (1990)
डायलॉग- अबे खामोश
शत्रुघ्न सिन्हा का हिंदी फिल्मों में यह सबसे सामन्य डायलॉग है। इस डायलॉग को वह कई फिल्मों में बोलते रहे हैं। यह डायलॉग कई सिनेप्रियों की जुबान पर आज भी छाया हुआ है।
फिल्म- हमसे न टकराना (1990)
डायलॉग- अबे खामोश
शत्रुघ्न सिन्हा का हिंदी फिल्मों में यह सबसे सामन्य डायलॉग है। इस डायलॉग को वह कई फिल्मों में बोलते रहे हैं। यह डायलॉग कई सिनेप्रियों की जुबान पर आज भी छाया हुआ है।
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